विकास का प्रण

प्राणी मात्र के भीतर देश भक्ति की भावनाओं को जाग्रत करने वाली कविता। अगर किसी भी कार्य की शुरुआत करनी हो तो देश के विषय में कुछ पंक्तियों से बेहतर क्या हो सकता है। पढ़े और आनंद लें।


सर्दियों का मौसम था , मेलों की रात थी,
असंख्य व्यंजन थे और लकड़ी की खाट थी।
हम सभी दोस्तों में शुरू हो गयी बातचीत,
उनका मानना था यही की विकास हमारा नहीं है मीत।
उनकी नज़रों में तोह सिर्फ अम्रीका ही बलवान है,
और हमारा भारत देश एक निर्बलता की खान है ।
जो बिजली अमरीका में क्षण भर के लिए ही जाती है,
वो ही बिजली भारत में बड़ी मुश्किल से आती है।
उनके एक के सामने हमारे साठ भी ढेर हैं ,
इस जनसँख्या में अधिकतर नाकामी के भेड़ हैं ।
उनकी सुरक्षा का लोहा संपूर्ण जगत मानता है ,
और यहाँ पर हर महीने एक धमाका हो ही जाता है।
वहां के न्याय के पर हर किसी को यकीन है ,
और यहाँ उसी न्याय के प्रति सबकी भावना हीन है। 


इतना सब सुनकर मैंने पाया कि यह मेरे सिद्धांतों की हार है,
मुझे और मेरे देश को पड़ी बड़ी बर्बरता से मार है ।
उसी क्षण मैंने प्रण लिया की मैं देश का विकास करवाऊँगा ,
और ऐसे नकारात्मक लोगों को मैं बार बार समझाऊँगा।



भारत में बिजली का उत्पादन शत प्रतिशत हो जायेगा,
और इस देश का हर नागरिक चैन की नींद सो पायेगा।
भारत की अर्थव्यवस्था इतनी समृद्धि पायेगी ,
कि सऊदी अरब यहाँ से तेल का आयात कराएगी ।
भारत के सुरक्षाकर्मी अपना सर्वस्व लुटा देंगे,
और इतना भय उत्पन्न होगा की सारे आतंकी भागेंगे।
भारत के न्याय में एक ऐसा सुधर आएगा,
कि कोई भी अपराधी फिर जुर्म करने से घबराएगा।
मेरे प्रयास हैं नाकाफ़ी , आप सभी की आवश्यकता है ,
तभी और सिर्फ तभी भारत एक विकसित देश बन सकता है।

*सुयश शुक्ल *

Comments

  1. Ae maut aisi maut de ki koi gam na rahe ,
    Ae maut aisi maut de ki koi gam na rahe ,
    ham na rahe par hamari yaad har insaan ke dil mein rahe,
    Ae maut aisi maut de ki koi gam na rahe,
    Ae maut aisi maut de ki koi gam na rahe ,
    ki jab main maroon to mathe pe shikand nahin , hothon pe tera naam ho


    Ae maut aisi maut de .

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