विद्यालय के दिन
एक देश भक्त व उसके भीतर बसी देश भक्ति की भावना के विषय में तो आप सभी ने जान ही लिया . चलिए अब कुछ पंक्तियों के माध्यम से विद्यालय के दिनों का स्मरण करते हैं.
धरती भूलूँ, अम्बर
भूलूँ, भूलूंगा नहीं वो सवेरा,
जब इस प्रेरणात्मक
विद्यालय में पहला दिन था मेरा ।
परीक्षाओं का तनाव ,
अध्यापकों से लगाव ,
वो किताबों की संगत ,अह: उन दिनों का दबाव ।
मेलों की धूम, मंच
की घबराहट,
वो कक्षा का शोर, श.....
प्रिंसिपल की आहट ।
कैंटीन की जमावट,
थोड़ी सी खिलखिलाहट ,
निर्वाचन में प्रचार
, और फिर जीत की हुंकार।
खेलों में स्पर्धा ,
प्रश्नोत्तरी की दुविधा ,
विद्वानों से
परामर्श, और अब..... आ गया निष्कर्ष ।
धन, दौलत, वैभव,
संसार , चाहे सर्वस्व जाये मुझसे छिन ,
नहीं भूलूंगा मैं
शिक्षकों की शिक्षा और विद्यालय में बिताये गए वो दिन।
*सुयश शुक्ल*
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