किये की कद्र ।


बीते चार वर्षों से मैं अपनी कविताओं, लेखों व छंदों के माध्यम अपने पाठकों से परिचित होता आया हूँ । आज कव्यस्त्रोत में एक नया आयाम जुड़ा है । इस वैचारिक मंच पर हमारे बीच एक युवा कवियत्री जी अपने लेखन का पदार्पण करने जा रही हैं । मानसिक एकांकीपन व व्यथा का यथासंभव व्याख्यान करती यह कविता आप सभी के सामने प्रस्तुत है । आशा करते हैं यह रचना आप सभी को पसंद आये 





कभी कभी दिल कचोटता है ,
दर्द से भर जाता है ।
दर्द आंसुओं में तब्दील हो जाते हैं,
आंसू आँखों से बह जाते हैं ।
हम तो फिर भी उन्ही के लिए करते हैं ,
जो हमारे किये की कद्र नहीं करते हैं ।

अब तो मन इतना सहम चूका है ,
कि अच्छाई में भी बुराई खोज लेता है ।
अब तो प्रशंसा भी सच्ची नहीं लगती है ,
जो वो हममे इतने नुक्स निकाल चुके हैं ।
हम तो फिर भी उन्ही के लिए करते हैं,
जो हमारे किये की कद्र नहीं करते हैं ।

रंगीन दिन ढल जाते हैं ,
खूबसूरत शामें बीत जाती हैं ।
रह जाती तो सिर्फ बुरी यादे हैं,
उनकी जो वादे कभी निभाए नहीं जाते हैं ।
हम तो फिर भी उन्ही के लिए करते हैं,
जो हमारे किये की कद्र नहीं करते हैं ।

- नेहा कुमारी




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