किये की कद्र ।

बीते चार वर्षों से मैं अपनी कविताओं, लेखों व छंदों के माध्यम अपने पाठकों से परिचित होता आया हूँ । आज कव्यस्त्रोत में एक नया आयाम जुड़ा है । इस वैचारिक मंच पर हमारे बीच एक युवा कवियत्री जी अपने लेखन का पदार्पण करने जा रही हैं । मानसिक एकांकीपन व व्यथा का यथासंभव व्याख्यान करती यह कविता आप सभी के सामने प्रस्तुत है । आशा करते हैं यह रचना आप सभी को पसंद आये । कभी कभी दिल कचोटता है , दर्द से भर जाता है । दर्द आंसुओं में तब्दील हो जाते हैं, आंसू आँखों से बह जाते हैं । हम तो फिर भी उन्ही के लिए करते हैं , जो हमारे किये की कद्र नहीं करते हैं । अब तो मन इतना सहम चूका है , कि अच्छाई में भी बुराई खोज लेता है । अब तो प्रशंसा भी सच्ची नहीं लगती है , जो वो हममे इतने नुक्स निकाल चुके हैं । हम तो फिर भी उन्ही के लिए करते हैं, जो हमारे किये की कद्र नहीं करते हैं । रंगीन दिन ढल जाते हैं , खूबसूरत शामें बीत जाती हैं । रह जाती तो सिर्फ बुरी यादे हैं, उनकी जो वादे कभी निभाए नहीं जाते हैं । हम तो फिर भी उन्ही के लिए करते हैं, जो हमारे कि...