गणतंत्र दिवस
गंणतंत्र दिवस
आज भारत में गणतंत्र दिवस की चकाचौंध के बीच कई कुरीतियाँ व समाज में संकुचित विचारधारा रखने वाले लोग जीवित हैं जिनका विलुप्त होना आज के समय में काफी मुश्किल प्रतीत होता है । आज मैं अपनी एक और स्वरचित कविता के माध्यम से ऐसी ही विचारधाराओं वाले लोगों पर वार करने का प्रयास करूंगा और साथ ही मैं अगले वर्ष एक सामाजिक एकता व अखंडता से परिपूर्ण गणतंत्र दिवस बनाये जाने की आशा करता हूँ । उम्मीद करता हूँ की मेरी यह रचना आप सभी को पसंद आये।
भारतवर्ष में आज बन रहा गणतंत्र है,
राष्ट्र है स्वतन्त्र पर सोच आज भी परतंत्र है ।
जिस देश के न्याय से गरीब जनता थर्राती है,
और जहाँ की लडकियाँ रात को बाहर निकलने से घबराती हैं ।
एक चित्रकार अपने विचार प्रस्तुत नहीं कर पता है और,
एक नादान विद्यार्थी का कातिल आसानी से बच जाता है ।
जिस देश के न्याय को माना जाता अँधा है ,
और जन प्रतिनिधियों की सीट बेचना जहाँ का आम धंधा है ।
जिस राष्ट्र में एक जातिवादी नेता प्रतिनिधि बन जाता है ,
और फिर बेहिचक पूरे देश में हिंसा वो फैलता है ।
जिस देश में नेताओं को माना जाता हस्ती है ,
और उनको चुनने वालों की जान बहुत ही सस्ती है ।
जिस राष्ट्र में अन्नदाता पर गोली चलवाई जाती है ,
और जन प्रधान के वस्त्रों की बोली लगवाई जाती है ।
फिर कैसे मैं यह मान लूं कि इस देश में गणतंत्र है ,
जब कुछ लोग हैं तानाशाह और सारी जनता परतंत्र है ।
चलिए इस राष्ट्रपर्व पर कुक्रियाओं पर वार करें ,
गणतंत्र को मजबूत बनाकर इस देश का उद्धार करें ।
*सुयश शुक्ल *
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