वो परीक्षा का दिन !

वो परीक्षा का दिन 


मैं जग उठा जनवरी के महीने में,
 परीक्षाओं की तैयारी थी करनी खून पसीने से ।
अभी अभी भूगोल में अपनी नय्या दुब्वा कर आया था , 
अब सर पर भौतिक शास्त्र और इतिहास का साया था ।
दोनों की परीक्षा देनी थी उस दिन ,
 गांधीजी, न्यूटन और फ्लेमिंग.... मैं कैसे बिताऊँ यह दिन तेरे बिन ।

सन सत्तावन की लड़ाई में हो  चला एक अनोखा खेल ,
बाजीराव बन गया इस्तर्द और उसका हो गया चुम्बकिये रेखाओं से मेल ।

मैंने भी इस परीक्षा में अब कुछ अलग कर दिखाने की ठानी ,
पर इस टाक में ही बना बैठा लक्ष्मीबाई को थोमसन कि नानी ।

अब मेरा दिमाग था सनक गया , सारा आपा मैंने खोया ,
खा पीकर आराम से था मैं बिस्तर पर जा सोया ।

सपने में देखा की मैक्सवेल भैया मुझे अपना दायाँ अंगूठा दिखा रहे थे ,
पर असल में तो वो थे 'पिस्सो' जो कि लकड़ी मिल बाँट के खा रहे थे ।

अचानक मैं पहुँच गया विश्वयुद्ध में जहाँ हिटलर ने चला दी मुझ पर गोली ,
परिणामस्वरूप मास्टर जी ने भर दी अण्डों से मेरी झोली ।



*सुयश शुक्ल*

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