गणतंत्र दिवस

गंणतंत्र दिवस आज भारत में गणतंत्र दिवस की चकाचौंध के बीच कई कुरीतियाँ व समाज में संकुचित विचारधारा रखने वाले लोग जीवित हैं जिनका विलुप्त होना आज के समय में काफी मुश्किल प्रतीत होता है । आज मैं अपनी एक और स्वरचित कविता के माध्यम से ऐसी ही विचारधाराओं वाले लोगों पर वार करने का प्रयास करूंगा और साथ ही मैं अगले वर्ष एक सामाजिक एकता व अखंडता से परिपूर्ण गणतंत्र दिवस बनाये जाने की आशा करता हूँ । उम्मीद करता हूँ की मेरी यह रचना आप सभी को पसंद आये। भारतवर्ष में आज बन रहा गणतंत्र है, राष्ट्र है स्वतन्त्र पर सोच आज भी परतंत्र है । जिस देश के न्याय से गरीब जनता थर्राती है, और जहाँ की लडकियाँ रात को बाहर निकलने से घबराती हैं । एक चित्रकार अपने विचार प्रस्तुत नहीं कर पता है और, एक नादान विद्यार्थी का कातिल आसानी से बच जाता है । जिस देश के न्याय को माना जाता अँधा है , और जन प्रतिनिधियों की सीट बेचना जहाँ का आम धंधा है । जिस राष्ट्र में एक जातिवादी नेता प्रतिनिधि बन जाता है , और फिर बेहिचक पूरे देश में हिंसा वो फैलता है । जिस देश...