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एक नयी शुरुआत

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"आत्मा के सौंदर्य का शब्द रूप है काव्य,  मानव होना भाग्य है ,कवि होना सौभाग्य" अपने बीते कल से परेशान पाठकों से निवेदन है कि वे नयी उमंग व ऊर्जा के साथ एक नयी शुरुआत करें । निम्न पंक्तियों को पढ़कर एक बार फिर अपने जीवन में आने वाली चुनौतियों से लड़ने का सहस पैदा करें । आगे की सुधि लेते हुए,  बीते कल को न याद करो, मिला है एक अवसर,  फिर से नयी शुरुआत करो। बीते कल की नाकामियों से अब तुम न कमज़ोर बनो , सफलता पाने के लिए  सदैव ही उचिततम मार्ग चुनो । वर्ष है नया, ऊर्जा है नयी, सुबुद्धि से तुम कम करो , कामयाबी के शिखर को छूने के लिए, फिर से नयी शुरुआत करो। नए सत्र की चुनौतियों से, कभी भी न निराश हो , संघर्ष करो ऐसा कि, सफल तुम्हारा प्रयास हो, अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए,  एक ऊंची उड़ान भरो , सुनहरे भविष्य की कामना करते हुए , फिर से नयी शुरुआत करो। *सुयश शुक्ल*  

विद्यालय के दिन

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एक देश भक्त व उसके भीतर बसी देश भक्ति की भावना के विषय में तो आप सभी ने जान ही लिया . चलिए अब कुछ पंक्तियों के माध्यम से विद्यालय के दिनों का स्मरण करते हैं. धरती भूलूँ, अम्बर भूलूँ, भूलूंगा नहीं वो सवेरा, जब इस प्रेरणात्मक विद्यालय में पहला दिन था मेरा । परीक्षाओं का तनाव , अध्यापकों से लगाव , वो किताबों की संगत ,अह: उन दिनों का दबाव । मेलों की धूम, मंच की घबराहट, वो कक्षा का शोर, श..... प्रिंसिपल की आहट । कैंटीन की जमावट, थोड़ी सी खिलखिलाहट , निर्वाचन में प्रचार , और फिर जीत की हुंकार। खेलों में स्पर्धा , प्रश्नोत्तरी की दुविधा , विद्वानों से परामर्श, और अब..... आ गया निष्कर्ष । धन, दौलत, वैभव, संसार , चाहे सर्वस्व जाये मुझसे छिन , नहीं भूलूंगा मैं शिक्षकों की शिक्षा और विद्यालय में बिताये गए वो दिन। *सुयश शुक्ल*

विकास का प्रण

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प्राणी मात्र के भीतर देश भक्ति की भावनाओं को जाग्रत करने वाली कविता। अगर किसी भी कार्य की शुरुआत करनी हो तो देश के विषय में कुछ पंक्तियों से बेहतर क्या हो सकता है। पढ़े और आनंद लें। सर्दियों का मौसम था , मेलों की रात थी, असंख्य व्यंजन थे और लकड़ी की खाट थी। हम सभी दोस्तों में शुरू हो गयी बातचीत, उनका मानना था यही की विकास हमारा नहीं है मीत। उनकी नज़रों में तोह सिर्फ अम्रीका ही बलवान है, और हमारा भारत देश एक निर्बलता की खान है । जो बिजली अमरीका में क्षण भर के लिए ही जाती है, वो ही बिजली भारत में बड़ी मुश्किल से आती है। उनके एक के सामने हमारे साठ भी ढेर हैं , इस जनसँख्या में अधिकतर नाकामी के भेड़ हैं । उनकी सुरक्षा का लोहा संपूर्ण जगत मानता है , और यहाँ पर हर महीने एक धमाका हो ही जाता है। वहां के न्याय के पर हर किसी को यकीन है , और यहाँ उसी न्याय के प्रति सबकी भावना हीन है।  इतना सब सुनकर मैंने पाया कि यह मेरे सिद्धांतों की हार है, मुझे और मेरे देश को पड़ी बड़ी बर्बरता से मार है । उसी क्षण ...

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