एक पीर उठी जब नभ से तब...

बीते एक सप्ताह में बिहार की एक दर्दनाक तस्वीर देश के सामने आई है जिसका मुख्य कारण चमकी नामक एक महामारी है । आंकड़ें बताते हैं कि अभी तक करीब १२० से भी ऊपर बच्चों की मृत्यु चुकी है जिसका कारण और कुछ नहीं बस लचर प्रबंधन व् प्रशासन है । एक मृत बच्चे के ददृष्टिकोण से मैंने इस कविता कि रचना की है जो कि संक्षेप में एक सामान्य परिवार के अनुभवों का व्याख्यान करेगी और शायद प्रशासन को ऐसे अनेक परिवारों की दुःख ओं व्यथा पर नज़र पड़ेगी । मैं आशा करता हूँ कि मेरी यह कविता भी आप सभी को पसंद आये और आत्ममंथन करने पर मजबूर कर सके । एक पीर उठी जब नभ से तब, गिरे गगन से अश्क अनेक, थे बिलख रहे मासूम वहाँ, इस धरती को ऐसे सुप्त देख। एक नादान वहाँ से बोला फिर, मैं अभी-अभी था खेल रहा, माँ के आंचल में झूम-झूम, पापा की उंगली पकड़-पकड़, सारे शहर में घूम-घूम। पर तभी चली चमकी की लहर, हरेक गांव, सारे पहर, मेरा चहकता बचपन भी, उसके सामने न सका ठहर। फिर जब पहुँचा अस्पताल, थी रुदन की ऐसी फुहार, उस कोलाहल के बीच खड़ा, मचता जहाँ ह...