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Showing posts from June, 2019

एक पीर उठी जब नभ से तब...

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बीते एक सप्ताह में बिहार की एक दर्दनाक तस्वीर देश के सामने आई है जिसका मुख्य कारण चमकी नामक एक महामारी है  । आंकड़ें बताते हैं कि अभी तक करीब १२० से भी ऊपर बच्चों की मृत्यु चुकी है जिसका कारण और कुछ नहीं बस लचर प्रबंधन व् प्रशासन है  । एक मृत बच्चे के ददृष्टिकोण से मैंने इस कविता कि रचना की है जो कि संक्षेप में एक सामान्य परिवार के अनुभवों का व्याख्यान करेगी और शायद प्रशासन को ऐसे अनेक परिवारों की दुःख ओं व्यथा पर नज़र पड़ेगी  । मैं आशा करता हूँ कि मेरी यह कविता भी आप सभी को पसंद आये और आत्ममंथन करने पर मजबूर कर सके  । एक पीर उठी जब नभ से तब, गिरे गगन से अश्क अनेक, थे बिलख रहे मासूम वहाँ, इस धरती को ऐसे सुप्त देख। एक नादान वहाँ से बोला फिर, मैं अभी-अभी था खेल रहा, माँ के आंचल में झूम-झूम, पापा की उंगली पकड़-पकड़, सारे शहर में घूम-घूम। पर तभी चली चमकी की लहर, हरेक गांव, सारे पहर, मेरा चहकता बचपन भी, उसके सामने न सका ठहर। फिर जब पहुँचा अस्पताल, थी रुदन की ऐसी फुहार, उस कोलाहल के बीच खड़ा, मचता जहाँ ह...

कर्म और कथन

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जीवन के बीते तीन वर्षों में कई ऐसे व्यक्तियों से परिचय हुआ जो जीवन में कुछ करने के लिए निरंतर प्रतिबद्ध रहते थे । उनसे प्रेरणा भी ली और अपने व्यक्तित्त्व में उनके कौशल से पनपती स्फूर्ति के विलय का भी प्रयास किया पर आज ऐसा आभास होता है कि जीवन लक्ष्य की प्राप्ति में वे मुझसे कहीं दीर निकल चुके हैं और हमारे उनके सामाजिक दायरे में एक सेतु का निर्माण हो चुका है जिसकी नीव मेरी शाब्दिक और उनके कार्मिक माध्यम ने रखी है ।आज ऐसी अनुभूति होने पर मैं अपनी एक और रचना आप सभी के सामने प्रस्तुत करने जा रहा हूँ जो कर्म और कथन नामक दो विधाओं के आधीन अपना जीवन यापन करने वाले मनुजों का व्याख्यान करती है । आशा करता हूँ कि मेरी यह रचना आप सभी को पसंद आये । सब कहते हैं , कुछ करते हैं , जग की पटल पर अबकी बार , कुछ नया अनोखा रचते हैं । कहने वाले तो मग्न हो गए , जीवन की रन ओ हवाओं में , चलते चलते फिर ढेर हो गए , इन क्षण भंगुर सी फिजाओं में । पर करने वाले तो कर्मठ थे , जिन्हें शून्य से शिखर तक जाना था, विकर्षण से विभक्त खड़े, बस दुनिया में नाम कमाना था । कहने वाले थे लगे हुए...

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कुछ शब्द मेरे उन जन मन को .....।

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