मैं नाम बनाने आया हूँ
जब मेरा शैक्षणिक जीवन निष्कर्ष की तरफ बढ़ चला है तब अनेकों मित्र अपने क्षेत्र में खूब उन्नति करने लग गए हैं । तकनीक से सम्बंधित कौशल होने के उपरांत भी उस दिशा में प्रयासरत न होने बहुत शुभचिंतकों को ठीक नहीं लगा । परन्तु मेरे विचार ऐसी स्तिथि में कुछ और ही थे जिन्हें इस कविता के माध्यम से मैं आप सभी के समक्ष रखने जा रहा हूँ ।आशा करता हूँ कि मेरी इस रचना को भी आप सब उतना ही प्रेम देंगे जितना मैं बीते ४ वर्षों से अनुभव कर रहा हूँ ।
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इस जग के बुद्धि ज्ञाता को
मैं यह बतलाने आया हूँ
धन वैभव से मुझको मोह नहीं ,
मैं नाम बनाने
आया हूँ।
बंगला, गाडी , ऐश ओ आराम ,
वाचन से होते जहाँ सारे काम ,
उन क्षणिक सुख का लोभ नहीं ,
जो विचार धनिक की पहचान हो ,
वो सम्मान कमाने आया हूँ
धन वैभव से मुखको मोह नहीं
मैं नाम बनाने आया हूँ।
क्या तत्व बचा है शासन में ,
कांटो से सज्जित आसन में
मेरी तृष्णा का है वो अंग नहीं ,
जन मानस के मन में चिरजीवी ,
एक विश्वास जगाने आया हूँ
धन वैभव से मुझको मोह नहीं
मैं नाम बनाने आया हूँ।
जो आज शीर्ष पर विद्यमान हैं
कुटिलता जिनकी पहचान है ,
ऐसे पद के मद को फिर छोड़ कहीं ,
उन आत्म प्रवंचित मूर्खों को
मैं सत्य बताने आया हूँ ,
धन वैभव से मुझको मोह नहीं ,
मैं नाम कमाने आया हूँ।
- सुयश शुक्ल
Love you sir
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