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स्वर्णतंत्र

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स्वर्णतंत्र कई बुद्धिजीवियों का कहना था कि मैंने कुछ वर्ष पूर्व गणतंत्र दिवस पर जो कविता लिखी थी उससे  नकारात्मकता का संचार होता है । पर जनाब देश की समस्याओं का व्याख्यान करना आत्ममंथन का अंश है और आत्ममंथन से कमियां ही निकल के आती है यह उन्हें नहीं सूझा। बहरहाल मैंने भी अपने कलम की सहायता से एक कविता की रचना की जिसमें मैं एक समृद्ध राष्ट्र से अपने पाठकों को परिचित करा रहा हूँ । उस संपन्न राष्ट्र को मैंने  स्वर्णतंत्र नाम दिया है । आशा करता हूँ कि यह रचना आप सभी को पसंद आये। एक स्वर्ण तंत्र की है आस मुझे , पाएंगे है विश्वास मुझे  एक स्वर्ण तंत्र की है आस मुझे  । जब नभ के अंतस्थल से गूंजेगा,महा संगठन का नारा , और हम क्षण भंगुर जीवों को होगा, देश हित सबसे प्यारा , जब संसार सलामी देगा, अपना मस्तक झुकाएगा , और कोई आगंतुक कुकर्मी हमारे प्रहरी से घबराएगा , जहाँ उंच नीच का भाव न होगा ,न धर्म जाट का फेरा , हर वर्ग प्रेम से बोलेगा , यह भारत देश है मेरा , जहाँ ख़ास न होगा , आम न होगा , निर्माण छोड़ कोई काम न होगा , ऐसा गंतव्य दिखता है अब पास...

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