सफलता

वर्तमानकालीन संसार में एक धारा के लोगों के अनुसार सफलता के शिखर पर आसीन होना एक ऐसी उपलब्धि बन चुकी है जिसका सरोकार कर्म से अतिरिक्त हर क्रत्रिम और स्थायी वस्तु से बन चूका है । परिणामस्वरूप वे उपरोक्त दिए गए आधार पर ही संसार के समस्त मनुष्यों का आंकलन करने में लग जाते हैं और उस सभी की मानसिक व्यथा का कारण भी बन जाते हैं । मैं भी उसी व्यथित समूह से निकला एक मानस हूँ जो अपने विचार आप सभी के समक्ष इस कविता के माध्यम से रखनेका प्रयास कर रहा हूँ । आशा करता हूँ कि मेरी यह कविता आप सभी को पसंद आये । सफलता की खोज में , ख्याति की ओज में , राह – राह भटकता हूँ , पर यह नहीं समझता हूँ सफलता विजय है, विराम नहीं, और इसको अर्जित करना इतना भी आसान नहीं । ढूँढ़ते हैं लोग इसे शरीर की चाल में सुंदर काया में , मनमोहक बाल में , कपड़ों की बनावट में , साज सजावट में , धन वैभव के रौब में , चापलूसों की फ़ौज में , शर्ट की सिलाई में, पैन्ट की ऊँचाई में, अपनी झूठी शान में , दूजों के अपमान में, शरीर के आकार में , और उसके चतुर्दिक प्रचार में। दिन ब दिन...