मेरे सपनों का भारत

भारत के लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल कि स्मृति में ३१ अक्टूबर को राष्ट्रीय एकता दिअस मनाया जाता है । भारत को एक बना कर रखने वाले ऐसे ईमानदार व्यक्ति को मेरा सादर प्रणाम ।
‘मेरे सपनों का भारत’। सपने सब देखते हैं और एक स्वर्णिम भारत का सपना कौन नहीं देखता । पर मेरा जो अनुभव रहा है उसमें मेरी कई ऐसे लोगों से हेनत हुई है जो अपने पंथ या समुदाय को लेकर आगे अधना चाहते है । उनकी नज़र में स्वर्णिम भारत कि रचना तभी सम्हाव है सब उनके समुदाय के लोग सर्वमत में आ जाएं। मैं ऐसी सोच का खंडन करता हूँ । अगर ऐसे हरत कि रचना हो गई तो हम गर्त में चले जायेंगे। शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा जैसे आवश्यक मुद्दों की जगह जाति, धर्म और संप्रदाय ले लेंगे । इससे होगा या ? हमर भविष्य शाश्वत अंधकार में चला जायेगा ।
अगर आप अपने सपनों के भारत में किसी एक वर्ग के विलुप्त होने की कामना कर रहे हैं तो यह आपकी महत्वाकांक्षा है, स्वर्णिम भारत का स्वप्न नहीं ।
बहरहाल मेरे सपनों क्ले भारत में ‘सर्व्पंथ समभाव’ सिर्फ एक चुनावी जुमला बनकर नहीं रह जायेगा, इसका धरातल पर क्रियान्यवन भी किया जायेगा । सही समुदाय के लोग मिल जुलकर बिना किसी भेदभाव कि भावना के जीवन यापन करेंगे ।
हमारे मत का रंग एक होगा जो राष्ट्रीयता के हाव से लिप्त होगा । हमें कोई भी कुशासक हरे या भगवा रंग के विचारों में बाँट नहीं पायेगा ।

सभी धर्मस्थल प्रत्येक भारतवासी के लिए एक समान महत्व रखेंगे । जब किसी विपत्ति में ईश्वर याद आयेंगे तो अल्लाह का भी स्मरण रहेगा ।
देश में विभूतियों को याद रखने के लिए हमे ४० फीट कि प्रतिमा कि आवश्यकता नहीं पड़ेगी । सरकार को बुद्धिहीनता कि गिरफ्त से आज़ादी मिल जाएगी । हमारे शासक में इतनी समझ आ जाएगी कि जनकल्याण शिवाजी की मूर्ती बनवाने से नहीं होता है बल्कि जर्जर पड़ी रोजमर्रा कि आवश्यक संसाधनों कि मरम्मत से होता है ।
देश के नेता ताजमहल से ऊपर उठकर हाशिये पर पड़े गरीब लोगों के उत्थान के विषय में सोचेंगे ।
भारत के बुद्धिजीवी अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता के नाम पर देश कि एकता को क्षति नहीं पहुंचाएंगे । ‘भारत माता कि जय’ बोलने से न तो उनके मुख में दर्द होगा और न ही राष्ट्रगान के लिए खड़े होने पर उनके पैरों में दर्द होगा ।
देश के सैनिकों के लिए कश्मीर में इतना शांतिप्रिय वातावरण होगा कि उन्हें अपने शास्त्रों का इस्तेमाल ही न करना पड़े ।
विपक्ष दोषारोपण से ऊपर उठकर सरकार कि ज्न्मारक नीतियों के खिलाफ आवाज़ उठाने लगेगा ।

भारत में ऑक्सीजन कि कमी से निर्दोष शिशुओं कि अकाल मृत्यु नहीं होगी और न ही ग्रामीण भारत कि नींव रखने वाले किसानों पर कोई गोली चलाएगा ।
मेरे सपनों के भारत में सबको जीने कि आज़ादी होगी चाहे वो मेरे देशवासी हों या कोई विदेशी पर्यटक ।
मेरे सपनों के भारत कि रचना में सबका बराबर का योगदान रहेगा । अगर एक आदमी के प्रयास पर्याप्त होते तो स्वच्छ भारत अभियान आंशिक सफलता प्राप्त न कर पाता । इस स्वर्णिम भारत कि एक-एक ईंट व्यवहारिक दृष्टिकोण से राखी जाएगी और उसी क्षण से भारत ने जो विश्वगुरु बन्ने का स्वप्न देखा है वो साकार होने लगेगा ।
जिनको अभी भी ऐसे भारत कि रचना में संदेह है वो एक बार अपनी नज़रों से केसरिया चस्मा हटा कर देखें , भारत अलग दिखेगा और वे स्वयंभू बदलाव कि पैरवी करेंगे ।
चलिए एक ऐसे राष्ट्र का निर्माण करें जहाँ :
परोपकार से बड़ा कोई धर्म न हो
और सहायता से बड़ी कोई पूजा ,
जहाँ मैत्री से बड़ी कोई जाति न हो
और धर्माचरण से बड़ा कोई संप्रदाय ,
मनुष्य विचारों से अमीर हो
और वैनामस्य की भावना से गरीब ।
इसी कामना के साथ मैं अपना लेख समाप्त करता हूँ । जय हिन्द ।जय भारत । धन्यवाद ।

* सुयश शुक्ल *

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