देश की दशा
भारत के निर्माण पर पड़ी यह एक खींच के लात है,
बताने योग्य नहीं है परन्तु यही देश के हालात हैं।
सब्जी तरकारी के दाम पहुँच गए आसमान पर ,
चोर डकैतों को नहीं लगता अब किसी शासक से डर।
जनता मर रही भूखी प्यासी , नेता लोग सब खात हैं ,
बताने योग्य नहीं है परन्तु यही देश के हालात हैं।
रुपया लुढ़क कर गिर गया , सोना ऊपर चढ़ गया ,
सबकुछ महंगा हो गया और आम आदमी मर गया।
गरीबी महंगाई सिर्फ जीती , जनता की यह मात है ,
बताने योग्य नहीं है परन्तु यही देश के हालात हैं।
सरहद पर खेला जा रहा है जवानों के साथ खुनी खेल,
और विदेश में हो रहा है शंतिभोज और नौकर शाहों का मेल।
इस देश के शासकों की संवेदनहीनता की यह बात है ,
बताने योग्य नहीं है परन्तु यही देश के हालात हैं।
एक यहाँ है शोषित वर्ग जो भोजन के लिए बिलखता है ,
और दूजा है शासक वर्ग जो रोज़ नया कुछ चखता है।
भारतवर्ष में यह गुलामी का पुन: आगात है,
बताने योग्य नहीं है परन्तु यही देश के हालात हैं।
*सुयश शुक्ल*
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