मेरा देह नष्ट हो जाएगा पर शब्द अमर रह जाएँगे....।

जीवन में कभी कभी आवश्यकता से अधिक चिंतन मंथन करने के कारण एक कटु स्तिथि आकास्मक ही मेरे सामने आ जाती है । ऐसे समय में अपने व्यक्तित्व की वास्तविक कीमत पता चल जाती है । उसी अनमोल व्याख्या का काव्य रूपांतरण करती एक कविता मेरे प्रिय पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है। आशा करता हूँ मेरी यह रचना भी आप सभी को पसंद आये । मेरा देह नष्ट हो जाएगा, पर शब्द अम्र रह जाएँगे । जब गंतव्य से परिचय होगा, और सब रिश्ते छूट जाएँगे, मेरा देह नष्ट हो जाएगा, पर शब्द अमर रह जाएँगे। जीवन की अंतिम ज्योत में, शुभचिंतकों की फ़ौज में, जो लपट उठेगी वो गरजेगी, मेरे कंठ के कौशल का वे अब पर्याय न खोज पाएंगे । मेरा देह नष्ट हो जाएगा, पर शब्द अम्र रह जाएँगे । गम और शोक की फुहार में, एक व्यक्ति विशेष के इंतज़ार में , जो भाव उठेगा वो बोलेगा कि, ऐसे परमार्थी जीव को वे अब , साक्षात् न देख पाएंगे । मेरा देह नष्ट हो जाएगा, पर शब्द अम्र रह जाएँगे । अश्कों के अनंत सागर में, उन नम आँखों के पानी में, हर आँसू टप-टप बरसेगा, ऐसी वैचरिक शीतलता का वे अब, अनुभ...